Wednesday, December 9, 2009


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी


Interview with Playback Singer Sharda on Vividh Bharti (4.10.09).
(This is the hindi-devanagari transcript. However, it is really heartening to receive many readers' requests to post the english translation since they have difficulty reading in hindi. English translation would certainly be posted ASAP. Please keep looking for the same!)

Sharda had made her grand debut in hindi film industry with the movie-Suraj, the music for which was composed by arguably the best and most popular ever MDs in HFM: Shankar - Jaikishan.(शंकर-जयकिशन से सम्बन्धित विस्तृत, दिलचस्प जानकारी की लिंक्स के लिए क्लिक करें - शंकर-जयकिशन)

एपिसोड 4 (04/10/2009)
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श: शारदा
यूख़ा: यूनुस ख़ान

यूख़ा: शारदा जी, आप बता रही थीं कि आप जो है 'वॉइस' का पूरा 'कल्चर' सिखाती हैं, ना केवल आम ज़िंदगी के लिए बल्कि 'प्रोफेशनल्स' के लिए भी जो गायूख़ा बनना चाहते हैं या जो 'वॉइसिंग' की दुनिया में जाना चाहते हैं.
श: हां, 'वॉइस' के लिए भी और 'ऎक्चुली' बच्चों के लिए. जैसे बच्चे बात करते हैं, 'डिफेक्टिव' हो जाते हैं, बात 'क्लियर्ली' समझ में नहीं आती है, और 'वॉइस' ऐसा है तो सामने सुननेवाला 'डिस्गस्टेड' हो जाता है, 'अरे जाने दो' कर के, 'यू नो, ही विल गेट अप ऎन्ड गो'. तो 'वॉइस' में इतना यह रखना चाहिए कि सुननेवाले पसंद करेंगे. और 'वॉइस' में एक 'नॅचुरल' घन्टी जैसी एक 'टोन' आनी चाहिए. वो 'सूदिंग' होनी चाहिए. ऐसा होने से वो आदमी 'सक्सेस' होने के 'चान्सेस' ज़्यादा हो जाते हैं. तो इसके लिए सब के लिए 'वॉइस कल्चर' करना ज़रूरी है, वो अलग बात है, 'सिंगर्स' के लिए तो करना ज़रूरी है ही क्योंकि इससे किसी भी उमर में वो अच्छा 'पर्फॉर्म' कर सकते हैं.

यूख़ा: क्या आपको लगता है कि नयी पीढ़ी के पास वक्त बहुत कम है?
श: हां, इसलिए तो मैने जो 'वर्कआउट' किया है, 'वेरी स्माल'. 'यू डोंट हॅव टु सिट फॉर अवर्स टुगेदर.' मैने दो 'कॅप्सुल्स' के हिसाब से दिया है, वो दो 'वर्कशॉप' में हो जाता है और आप उसे कहीं भी फिर 'प्रॅक्टीस' कर सकते हैं. और 'म्यूज़िक प्रॅक्टीस' भी आप कम समय करके, मतलब, 15 मिनिट भी करेंगे तो भी ठीक है, दो-तीन रोज़ में एक बार करेंगे तो भी ठीक है, 'वॉइस कल्चर' के बाद इतना घन्टों करने की ज़रूरत नहीं. वो पुराने ज़माने में घन्टों 'लाइफ' भर करते थे, उसके बाद जैसे गौतम बुद्ध को ज्ञान हुआ, ऐसा ज्ञान उदय हुआ करता था. अभी ऐसा नहीं है, अभी ज्ञान 'रेडीमेड' आपको मिलता है. अभी मैं 'गाइडेन्स' दे सकती हूं कि क्या करने से वो निकलेगा. अंदर से उसको साँस कैसे लेना चाहिए, क्या लेना चाहिए.

यूख़ा: आपने बताया कि 'म्यूज़िक' का एक 'थेरप्यूटिक यूज़' है, चिकित्सात्मक उपयोग है...
श: हां, क्योंकि 'म्यूज़िक' जो है, आप नाक से लेते हैं, गले से लेते हैं, नाभि से लेते हैं, वो हर 'ग्लॅंड' को 'ऎक्टिवेट' करता है, 'बॉडी' में बहुत सारे 'ग्लॅंड्स' होते हैं, जैसे आप 'साउंड वेव्स' कहते हैं, जैसे आप इसे 'साउंड प्रूफ' कहते हैं तो इधर सब लगा के रखा है ताकि 'वेव्स ब्रेक' ना हो. तो 'साउंड वेव्स' जाकर 'बॉडी' में 'अटॅक' करता है, जैसे हम 'हमिंग' करते हैं, तो वो 'ग्लॅंड्स' को 'ऎक्टिवेट' करते हैं, जो 'ग्लॅंड्स लेज़ी' पड़ा हुआ है 'यू नो', 'आउट ऑफ वर्क' बैठा हुआ है, तभी बीमारियाँ आती हैं, 'ग्लॅंड्स' को 'ऎक्टिवेट' करते हैं तो 'देन इट स्टार्ट्स प्रोड्यूसिंग मेडिसिन्स', 'बॉडी' में ही 'मेडिसिन्स' पैदा होते हैं, ये जो 'मेडिसिन्स' है किसी के ना किसी के 'बॉडी' से ही तो निकलता है, 'ऎनिमल्स' के 'बॉडी' से निकलता है, ऐसे ही हमारे 'बॉडी' में भी 'मेडिसिन्स' है, उसको हम सामवेद करके, और उसको हम दूसरी बात जो 'वॉइस कल्चर', हम पहले पहले ज़माने में हम 'म्यूज़िक' किससे लिया करते थे 'नॅचुरल साउंड्स' के लिए, और मैं उस दिन वहाँ जा रही थी तो एक छोटा सा 'ग्रूप' जा रहा था, उसकी एक 'साउंड' आ रही थी. मैने बोला मैने यह 'साउंड' सुनी है, कहाँ सुना है, कहाँ सुना है, 'देन आइ रिमेम्बर्ड' वेद पारायण में करते थे (हम्स), यह पूरा 'साउंड' उधर से हमको सुनने में आया.
यूख़ा: क्या बात है!
श: इसमें से लेकर उन्होने उस 'म्यूज़िक' को बनाया है. इसलिए हमारे इतने राग है, कौन सा राग किस 'टाइम' में गाना चाहिए, इसका बहुत बड़ा 'साइन्स' है, इसकी हम क्या बात कर सकते हैं!

यूख़ा: क्या बात है, क्या बात है! शारदा जी, आप ने अपने बचपन के बारे में ज़्यादा नहीं बताया. आप ने बताया कि आप तेहरान से बंबई कैसे आ गयीं थीं, उससे पहले की कहानी...
श: उससे पहले तो हमारा इतना 'सिंपल' बचपन था कि क्या बताऊं! हम लोग मिट्टी से खेला करते थे, मां-बाप जो खाना देते थे वो खाया करते थे, थोड़ा सा जो भी, दो-तीन कपडे थे उसी को साल भर पहनते थे, फिर दिवाली में और कपडे मिलते थे. बस, ना कोई 'पॉकेट मनी' था, ना कुछ था, जो देते थे वही देते थे. 'माई ग्रॆंडफादर यूज़्ड टु टीच मी ऑल दीज़ थिंग्स यू नो', उपनिषद से लेके श्लोक वगैरह, रामायण यह सब कहा करते थे, पूजा करते थे वो हम देखते थे, और घर में रंगोलियाँ बनाया करते थे, और डान्डिया वगैरह खेलते थे, यही हमारा 'गेम्स' था.

यूख़ा: तमिल नाडु के किस शहर से आप का ताल्लुक है?
श: तमिल नाडु में कुम्भकोणम करके, कुंभ मेला, कहते हैं कि जब प्रलय हुया था तब एक कुंभ इलाहाबाद में जाके ठहरा और एक कुंभ कुम्भकोणम में जाके ठहरा. तो कुम्भकोणम में 'आइ वॉज़ बॉर्न' और वहाँ पे हमारा बहुत बड़ा क्षेत्र स्थल है .

यूख़ा: तो आपकी 'स्कूलिंग' वहीं...
श: उधर ही हुआ, और बाद में चेन्नई आए, और उसके बाद बॉम्बे आए हैं.

यूख़ा: आप ने बताया कि आप नूरजहाँ की 'फॆन' हैं.
श: ओह, नूरजहाँ और रफ़ी साहब की, वो "यहाँ बदला वफ़ा का" सुनने के लिए मरती थी, क्योंकि वहाँ न 'रेडियो' था न कुछ था सुनने के लिए, और हमारे गली के पीछे चाय का दुकान था. तो उधर बजाते थे. एक दिन मैं खाना खा रही थी, तो खाना छोड कर उपर 'टेरेस' पर भागी सुनने के लिए, और पूरा सुन कर ही नीचे आई. मां ने कहा कि क्या हो गया तुमको. मैने खाने के हाथ से ही खडी रही और पूरा सुनकर वापस आई.
यूख़ा: तो वो गाना सुना दीजिए
श: (सिंग्स) "यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है..."

यूख़ा: क्या बात है, क्या बात है! नूरजहाँ से कभी मुलाक़ात हुई?
श: मुलाक़ात नहीं हुई नूरजहाँ से.
यूख़ा: अच्छा, इसके अलावा और कौन से गाने पसंद हैं नूरजहाँ के?
श: (सिंग्स) "आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे....
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सॉंग: आजा मेरी बरबाद मोहब्बत के सहारे (अनमोल घड़ी)
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यूख़ा: क्या बात है! वो ज़माना जो है वो 'रेडियो' का ही ज़माना था. 'रेकॉर्ड' ज़्यादा मिलते नहीं थे.
श: हां, और गाना जब आता था तो भाग-भाग कर लिखते थे, समझ में भी नहीं आता था तब, हिन्दी भी बोलना नहीं आता था.

यूख़ा: तो ये सब गाने 'रेडियो' से सुनती रहती थीं और 'डायरी' में लिखती रहती थीं!
श: 'या'

यूख़ा: क्या बात है! अच्छा आप तेहरान से जब बंबई आ गयीं और आरके स्टूडियोज़ में आपका 'ऑडिशन' भी हो गया, तो एक सिलसिला शुरू हो गया. तो आप 'म्यूज़िक' को लेकर जो अपने गुरुओं के नाम भी बताए, तो इन सब से तालीम लेने में आप ने कितनी मेहनत की, कितनी मशक्कत करवाते थे?
श: बहुत मेहनत करती थी, और निर्मला जी के साथ तो, वो विरार से आती थीं, विरार में रहती थीं, 'स्टेशन' जाते थे उनको लाने के लिए. फिर घर में ला कर, पहले वो पूजा करती थीं, फिर थोड़ा चाय पीकर, थोड़ा 'रेस्ट' करतीं और फिर मुझे बताती. वो पूरा सेवा मैने उनको किया और इस तरह से सेवा करके हम लोगों ने उन्हें पाया.

यूख़ा: शास्त्रीय संगीत की तालीम कितनी ज़रूरी है संगीत की दुनिया में आने के लिए, चाहे वो 'फिल्म म्यूज़िक' हो या 'नॉन-फिल्म म्यूज़िक'?
श: थोड़ा बहुत तो ज़रूरी ही है, कुछ-कुछ राग सीखना अच्छा ही है, क्योंकि उसी के 'बेस' पे तो सब गीत बनते हैं ना!

यूख़ा: जी. राज कपूर की फिल्मों के लिए आपने बहुत महत्वपूर्ण गाने गाए हैं और वहीं से आप का सफ़र शुरू हुआ था.

श: उन्होने 'प्रॉमिस' किया था कि आरके के 'बॅनर' में हम गवाएँगे. तो उसको पूरा करने का उनका इरादा था, तो उन्होने ‘कल आज और कल’ में एक गाना लिया, ‘मेरा नाम जोकर’ के लिए एक बड़ा 'ड्रीम सीक्वेन्स' का 'सॉंग' था, बड़ा 'सॉंग' था, वो तीन 'पार्ट्स' में हुआ, कितने सारे 'म्युज़ीशियन्स' आए थे, 'ऑल ओवर इंडिया' से 'प्रेस' आई हुई थी, बहुत बड़ा गाना 'रेकॉर्ड' हुआ, लाखों के ऊपर उसका 'बजट' गया, और वो गाना मैं सोच रही थी कि कब 'शूटिंग' होनेवाली है, कब 'शूटिंग' होनेवाली है, लेकिन बाद में उसकी 'शूटिंग' ही नहीं हुई. और बाद में फिल्मों से मेरे गाने निकालते रहे, मेरा मन भी बहुत 'डिप्रेस्ड' हो गया, इसलिए थोड़े दिनों के लिए मैं 'इंडस्ट्री' से हट गयी थी.

यूख़ा: लेकिन ‘कल आज और कल’ का गीत जो है...
श: (सिंग्स) "किसी के दिल को सनम लेके यूँ नहीं जाते, हुज़ूर ऐसा सितम करके यूँ नहीं जाते..."
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सॉंग: किसी के दिल को सनम (कल आज और कल)
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यूख़ा: यह बताइए कि दुनिया भर में जो आपके चाहनेवाले हैं, वो मौजूद हैं और...
श: मुझे 'सर्प्राइज़' होता है कि मेरे इतने चाहनेवाले हैं, और मैं ही हट गयी थी कि 'इफ़ दे डोंट लाइक मी देन’, मैं हट जाती हूं. लेकिन मुझे अब पता चल रहा है कि कितने ही लोग हैं जो चाहते हैं और मुझे याद रखा है और अभी तक सुन रहे हैं और 'आइ नेवर एक्सपेक्टेड इट'.
यूख़ा: आपको किस तरह के 'कॉंप्लिमेंट' मिलते हैं, चाहे 'मेल' पर हों, 'वेबसाइट' पर हों?
श: 'वेबसाइट' पर 'एनचॆंटिंग वॉइस', अभी परसों आया मेरे को 'लेटर', और कितने ही लोग हैं योग आश्रम से, योग सरस्वती, योगेंद्रा, उन्होने कहा कि आपके गले में सरस्वती हैं, और किसी 'कॉलेज प्रोफेसर' ने कहा कि 'इट इज़ सोल स्टरिंग एक्सपीरियन्स, आप के गीत सुनना.

यूख़ा: क्या बात है! क्या आपको लगता है कि ये जो 'कॉंप्लिमेंट्स' है अगर तब आतीं जब आपको सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, जब आपको लग रहा था कि 'फिल्म इंडस्ट्री' में आपके लिए जगह नहीं है, आप अपनी मर्ज़ी से अलग हो गयी थीं.
श: हां, तब अलग हो गयी थी अपनी मर्ज़ी से. कितने मेरे 'गॅरेज' भर के 'फॆन मेल्स' थे, सबको मैने निकाल दिया, अच्छा चलो हटा ही देती हूं, 'आइ डोंट वॉंट टु टेक, यू नो, एनिबडीज़... ', हम किसी का हक़ चुराने नहीं आए हैं, भगवान ने अपने लिए कुछ दिया हुआ है, जो भी 'सोल' इधर आया हुआ है सब को कुछ दिया हुआ है, 'आइ वॉंटेड टु टेक वॉटेवर वाज़ ड्यू टु मी.' तो तब मैने सब निकाल दिया, तब मुझे इतना पता ही नहीं चला, तब तो बेवकूफ़ थी ना, 'यंग' भी थी.

यूख़ा: (लाफ्स) अगर आपको मौका मिले कुछ चीज़ें सुधारने का तो वो कौन सी एक चीज़ है जिसको आप 'करेक्ट' करना चाहेंगी?
श: अभी बताया ना कि 'आइ शॆल सिंग ऎंड शो' कि किस तरह से एक गाने को गाया जाता है. कैसे उसमें जान डालनी चाहिए, कैसे उसको 'प्रेज़ेंट' करना चाहिए, गाके बताऊंगी.

यूख़ा: क्या बात है! अब बारी है आपका एक गाना सुनने की.
श: और?
यूख़ा: ह्म्म्म, ‘एक नारी एक ब्रह्मचारी’ फिल्म का गाना.
श: (सिंग्स) "आपके पीछे पड गयी मैं, दिल लेके मैं तो जाऊंगी..."
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सॉंग: आपके पीछे पड गयी मैं (एक नारी एक ब्रह्मचारी)
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श: इसका देखिए कैसा 'एक्सप्रेशन' , वो 'नॉटीनेस' , वो मज़ाक, हर गाने के अंदर एक 'सोल पॉइंट' होता है, जैसे "तितली उड़ी" में "तितली', उसमें एक 'सोल' है, आप के पीछे "पड" गयी मैं, इस तरह से 'सोल' को समझना चाहिए. गाने में 'सोल पॉइंट' कहाँ पे है, उसको लेकर के 'पर्फॉर्म' करना चाहिए.

यूख़ा: बहुत अच्छी बात बताई आपने. अच्छा, येसुदास के साथ आपने कौन से गाने गाए हैं?
श: येसुदास के साथ मैने अपनी फिल्म क्षितिज में एक गाना 'रेकॉर्ड' किया, उसमें 'क्लॅसिकल बेस' में गाया था, उनके साथ 'डुऎट' गाया, (सिंग्स) "देखो साजन चुराए है मन, तेरा मेरा मिलन...", ऐसा कुछ गाना था.

यूख़ा: क्या बात है! आपने बताया कि आप 'म्यूज़िक डाइरेक्शन' की दुनिया में आईं थीं, मुझे लगता है कि एक बहुत बड़ा 'चॅलेंज' रहा होगा आपके लिए, एक बहुत बड़ा जोखिम भी रहा होगा, क्योंकि एक तो जो 'इंडस्ट्री' है पूरी तरह से 'मेल डॉमिनेटेड' है, ख़ास कर 'म्यूज़िक डाइरेक्शन'.
श: आसान ही था क्योंकि 'म्यूज़िक डाइरेक्शन' सीख कर नहीं आएगा. 'कॉंपोसिंग' सीख कर नहीं आती, 'ऑटोमॅटिक', जो भगवान की देन होती है, जैसे-जैसे मैं 'कंपोज़' करती गयी, 'कॉंपोसिंग' में और 'नालेज' मिलता गया और किशोर दा, रफ़ी साहब, मन्ना दा, मुकेश जी, आशा जी को भी मैने गवाया, उषा जी ने भी बहुत 'सपोर्ट' किया, और इन लोगों ने इतना 'हार्ट फेल्ट सपोर्ट' दिया कि मुझे बहुत 'ईज़ी' महसूस हुया.
यूख़ा: तो फिर आपका 'कंपोज़' किया हुआ किसी और का गाना सुना जाए यहाँ पर?
श: ज़रूर!
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सॉंग: दिल में जो आया अपुन किया (ज़माने से पूछो)
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एंड ऑफ एपिसोड-4

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